onehindudharma.org
onehindudharma.org

हिन्दू धर्म विश्वकोश (Hindu Dharma Encyclopedia)

भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा क्यों ली?

भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा क्यों ली?

हिन्दू धर्म को मानने वालों को भगवान शिव के बारे में तो जानकारी ज़रूर होगी। भगवान शिव त्रिदेवों में से एक हैं और उनका कार्य सृष्टि का विध्वंस करना है। अब यहाँ पर ऐसा मत समझ लीजियेगा कि भगवान विध्वंस कैसे कर सकते हैं। इसके बारे में मैंने निम्नलिखित लिंक पर दिए गए इस लेख में विस्तार से बताया हुआ है। आप इसे ज़रूर पढ़ें।

👉 भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम कौन से हैं?

भगवन शिव को “देवों का देव” भी कहा जाता है। और हिन्दू धर्म ग्रंथों की मानें तो उनके भक्तों के द्वारा उनकी भक्ति और तप समय – समय पर किया जाता रहा है। इस लेख में हम यह जानेंगे कि भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा क्यों ली थी

बात महाभारत काल की है। इसलिए इस सवाल का जवाब ज़्यादा पारदर्शिता से समझने के लिए हमें इस परीक्षा की घटना से पहले की बात जाननी होगी। तो पहले उसे जान लेते हैं।

महाभारत के युद्ध का कारण क्या था ?

सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि महाभारत के युद्ध का कारण क्या था? क्यूंकि अगर महाभारत के युद्ध का कोई कारण नहीं होता तो अर्जुन की परीक्षा की स्थिति भी पैदा न हो पाती।

बात एक समय की है जब पांडव और कौरव जुए का खेल खेल रहे थे। कौरवों के मामा शकुनि को इस खेल में महारत हासिल थी। यही वजह रही कि पांडव जुए के इस खेल में अपना सब कुछ हार गए। यहाँ तक की वो अपनी पत्नी द्रौपदी तक को जुए के खेल में कौरवों को हार गए। और फिर जो हुआ वो इतिहास के काले अक्षरों में लिखा गया।

इसी दिन दुर्योधन ने अपने कुकर्म कि सारी सीमाएं लांघ दीं और द्रौपदी का चीर हरण किया। भरी सभा में सभी बस देखते रहे और श्री कृष्ण ने द्रौपदी कि लाज दुष्टों से बचाई। श्री कृष्ण ने भरी सभा को धिक्कारा और वहां पर मौजूद सभी को न्याय और धर्म के रास्ते पर चलने का उपदेश दिया।

इसे देख कर दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्र ने पांडवों द्वारा हारे हुए धन और राज्य को पांडवों को फिर से वापस करने का निर्णय लिया। लेकिन शकुनि बहुत ही चतुर था और उसने दुर्योधन को उकसाया। दुर्योधन ने भी मामा की बात मानते हुए पांडवों के लिए 12 वर्षों का वनवास माँगा और 1 वर्ष का अज्ञात वास मांगा।

अज्ञात वास का मतलब था कि 12 वर्षों तक तो पांडव वनवास में रहेंगे परन्तु तेहरवें वर्ष में उन्हें अज्ञात वास में रहना पड़ेगा। यानी कि इस अज्ञात वास के दौरान अगर किसी ने भी उन्हें पहचान लिया तो उन्हें फिर से वनवास पर जाना पड़ता।

अब पांडवों को वनवास के लिए जाना पड़ा था। लेकिन पांडव अपना खोया हुआ राज्य और सम्मान वापस पाना चाहते थे। उन्हें बल की ज़रूरत थी। इसलिए श्री कृष्ण भगवान अर्जुन को भगवान शिव की भक्ति और तप करने की सलाह देते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन से भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर पशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिए कहते हैं।

पशुपतास्त्र क्या है?

पशुपतास्त्र भगवान शिव, माँ काली और आदि परा शक्ति का एक अनूठा और सबसे विनाशकारी व्यक्तिगत हथियार है। इस अस्त्र को मन, आंखों, शब्दों या धनुष से मुक्त किया जा सकता है। यह अस्त्र कम दुश्मनों या कम योद्धाओं के खिलाफ इस्तेमाल करके कभी व्यर्थ नहीं किया जाने वाला अस्त्र था। पशुपतास्त्र सृष्टि को नष्ट करने और सभी प्राणियों को जीतने में सक्षम था।

पशुपतास्त्र हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित सबसे विनाशकारी, शक्तिशाली और अनूठा हथियार है। महाभारत में केवल अर्जुन, रामायण में श्री राम और ऋषि विश्वामित्र को ही यह अस्त्र प्राप्त हुआ था। यह छह मन्त्रमुक्त हथियारों में से एक है जिसका विरोध नहीं किया जा सकता है।

पशुपतास्त्र प्राप्त करने और अर्जुन की परीक्षा की कथा

श्री कृष्ण से परामर्श के बाद अर्जुन अपने भाईयों को छोड़ कर जंगलों में तप करने के लिए चला गया। अर्जुन ने भगवान शिव का बहुत कठोर तप किया। अब अर्जुन की परीक्षा की बारी थी क्योंकि अर्जुन को अपने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने पर बहुत अभिमान था।

अभी पांडवों के वनवास का पांचवां वर्ष ही चल रहा था। इतने में दुर्योधन को अर्जुन के भगवान शिव का तप करने के बारे में पता चल गया। इतना जान कर दुर्योधन ने मूकासुर को अर्जुन की तपस्या भंग करने और उसे मारने के लिए भेजा। मूकासुर ने एक जंगली सूअर का रूप धारण कर के अर्जुन पर आक्रमण किया।

अर्जुन ने अपने धनुष से मूकासुर पर तीर चलाया। उतने में भगवान शिव एक भील का रूप लेकर के वहां प्रकट हुए और उन्होंने भी जंगली सूअर पर तीर चलाया। दोनों ने एक साथ ही तीर चलाया और देखते ही देखते जंगली सूअर वहीं पर मूर्छित हो गया।

भगवान शिव और अर्जुन के बीच युद्ध

अब भील और अर्जुन के बीच इस बात के लिए तर्क होने लगा कि इस सूअर को किसने मारा है। देखते ही देखते यह तर्क भयंकर युद्ध में बदल गया। अर्जुन ने भगवान शिव के रूप में लड़ रहे भील पर बाणों की वर्षा कर दी और भगवान शिव का धनुष तोड़ डाला क्यूंकि भील रूप में भगवान शिव के पास एक साधारण सा धनुष था। उस समय उनके पास उनका पिनाक नहीं था।

उसके बाद दोनों में शस्त्रों से युद्ध हुआ। युद्ध इतना भयंकर हुआ कि अर्जुन लड़ते लड़ते थक गया मगर भील को हरा नहीं पाया। अंत में अर्जुन जान गया कि यह भील रूप में भगवान शिव ही हैं। अर्जुन ने अपनी हार मान ली और भील को प्रणाम किया। उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए और अर्जुन को वरदान के रूप में पशुपतास्त्र प्रदान किया।

भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा क्यों ली?

तो अब तक आप जान ही चुके होंगे कि भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा क्यों ली थी? अर्जुन को अपने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने पर बहुत अभिमान था। यही वजह थी कि अर्जुन का अभिमान तोड़ने के लिए भगवान शिव ने यह लीला रची थी।

मैं आशा करता हूँ कि आप लोगों को यह लेख अच्छा लगा होगा और आपके ज्ञान में इस से वृद्धि हुई होगी। कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ सांझा कीजियेगा।

खुश रहिये, स्वस्थ रहिये…

जय श्री कृष्ण!

भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा क्यों ली? – PDF Download



इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें - भगवान विष्णु के सभी अवतार क्रमागत कौन से हैं?

Original link: One Hindu Dharma

CC BY-NC-ND 2.0 版权声明

喜欢我的文章吗?
别忘了给点支持与赞赏,让我知道创作的路上有你陪伴。

加载中…

发布评论