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हिन्दू धर्म विश्वकोश (Hindu Dharma Encyclopedia)

भगवान विष्णु के सभी अवतार क्रमागत कौन से हैं?

भगवान विष्णु के सभी अवतार क्रमागत कौन से हैं?

भगवन श्री विष्णु त्रिदेवों में से एक हैं। विष्णु जी हिन्दू धर्म के सबसे प्रमुख देवी देवताओं में से हैं। वैसे तो विष्णु भगवान को पूरे भारत वर्ष और अन्य जगहों में हिन्दुओं द्वारा पूजा जाता है परन्तु जो लोग विष्णु भगवान की प्रमुख रूप से पूजा करते हैं उन्हें वैष्णव या वैष्णव पंथ का माना जाता है। इस लेख में हम भगवान विष्णु के सभी अवतार क्रमागत रूप में विभिन्न काल खण्डों के अनुसार जानेंगे।

बहुत कम लोगों को ही जानकारी होगी कि हिन्दू धर्म में वैसे तो कई देवी देवताओं की पूजा की जाती है परंतु ईश्वर एक ही माने जाते हैं। वेदों में ईश्वर को “पर ब्रह्म” या “परम ब्रह्म” बताया गया है। “पर ब्रह्म” का मतलब है “परमात्मा”।

“परमात्मा” शब्द दो शब्दों की संधि है और अगर हम इसका संधि विच्छेद करें तो यह दो शब्दों “परम” और “आत्मा” के मेल से बनता है। बाकी जो भी चीज़ें इस ब्रह्माण्ड में अवतरित हुई हैं या कभी भविष्य में होंगी चाहे वो पशु, मनुष्य, पक्षी, पेड़, पौधे या फिर देवी देवता हों, सभी उसी “पर ब्रह्म” का एक विस्तार मात्र हैं।

इसको जानने के लिए आसान भाषा में समझते हैं जिस प्रकार हमारे हाथ और पैर हमारे शरीर का ही विस्तार हैं और उसी का भाग हैं तो उसी प्रकार जो सृष्टि में आकार और निराकार रूप में है वो सब उस एक “पर ब्रह्म” का ही विस्तार है या उसका भाग है।

ईश्वर को “पर ब्रह्म” या “परमात्मा” क्यों कहते हैं?

आपके मन में शायद यह सवाल ज़रूर उठा होगा कि ईश्वर को “पर ब्रह्म” या “परमात्मा” ही क्यों कहा जाता है। जैसे की हम सब जानते हैं कि हिन्दू धर्म आत्मा और कर्म के सिद्धांत पर विश्वास करता है। इसके अनुसार जो भी जीव इस धरती पर जन्म लेता है उसे एक दिन अवश्य ही मरना है।

और मरने से मतलब केवल शरीर का मरना होता है क्यूंकि हमारे शरीर में विराजमान जो “परमात्मा” का अंश “आत्मा” है वो कभी नहीं मरती। आत्मा केवल शरीर बदलती है। जब एक मनुष्य अपने कर्मों के हिसाब से अपना जीवन काल सम्पूर्ण कर देता है तो उसे अपना शरीर छोड़ना पड़ता है, एक नए शरीर के लिए।

यह नया शरीर उसे उसके पिछले जन्म में किये गए कर्मों के अनुसार प्राप्त होता है। तो इस प्रकार जीवन और मरण का यह काल चक्र वृत्ताकार में चला रहता है। यह चक्र तब तक चलता है जब तक की आत्मा अपनी स्वभाविकता को पहचान नहीं लेती और “आत्मज्ञान” को प्राप्त नहीं हो जाती। जब किसी मनुष्य को “आत्मज्ञान” प्राप्त होता है तो वह उस परम तत्व जिसे हम “परमात्मा” भी कहते हैं में विलीन हों जाता है। इसे हम “योग” कहते हैं। हिन्दू धर्म में योग शब्द इसी बात से लिया गया है।

तो इस बात से हमें जानकारी मिलती है कि ईश्वर को परमात्मा इस लिए कहा जाता है क्यूंकि वह एक “परम” आत्मा हैं। सभी गुण और दोष से रहित, जीवन के काल चक्र से मुक्त, जिस पर समय का कोई प्रभाव नहीं है। वह सच्चिदानंद हैं। वह सदैव परम आनंद में हैं। लेकिन आत्मा इसके विपरीत है। और मनुष्य का लक्ष्य यही है कि एक दिन इसी परम तत्व में विलीन होकर स्वयं ही परमात्मा हो जाएँ।

विष्णु भगवान कौन हैं?

भगवान विष्णु को सृष्टि का संरक्षणकर्ता भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार यह सृष्टि तीन तरह की दैवीय शक्तिओं से चलायमान है। इन तीन शक्तिओं कि प्रभुता त्रिदेवों के पास है।

ब्रह्मा भगवान को इस सृष्टि का रचनाकार कहा जाता है, भगवान विष्णु को संरक्षक तो भगवान शिव को सृष्टि का विध्वंसक कहा जाता है। जो चीज़ बनी है उसे एक दिन ख़तम होना ही है चाहे वह एक मनुष्य हो या सम्पूर्ण सृष्टि। फिर उसी प्रकार सृष्टि का फिर से सृजन होता है जिस प्रकार मनुष्य का दोबारा जन्म होता है।

कहने में तो यह तीनों अलग हैं परन्तु गुह्य ज्ञान यही है के असल में यह तीनों उसी “पर ब्रह्म” का एक रूप हैं जिसे हम ईश्वर कहते हैं। और “पर ब्रह्म” के हर एक रूप को हिन्दू धर्म में ईश्वर ही माना गया है क्यूंकि वो हैं तो वही। इस बात को हम ऐसे समझते हैं, मान लीजिये आप कल को किसी कंपनी के मालिक बन जाते हैं लेकिन फिर भी आपका व्यक्तित्व तो पहले जैसा ही रहेगा। आपका नाम तो एक ही रहेगा।

तो इस प्रकार हम जान पाते हैं कि विष्णु भगवान ईश्वर ही हैं जिनका कार्य सृष्टि का संचालन एवं संरक्षण करना है।

भगवान विष्णु के सभी अवतार क्रमागत

तो आईये भगवान विष्णु के सभी अवतारों के बारे में जानते हैं। विष्णु भगवान के सभी अवतारों को दशावतार भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु भगवान के विशेष रूप से इस महायुग में कुल 10 अवतार होंगे। इनमें से 9 अवतार विष्णु भगवान द्वारा पहले से ही ले लिए गए हैं। अंतिम अवतार भगवान विष्णु द्वारा कलियुग के अंत में लिया जायेगा जिसे अभी अनेक वर्ष बाकी हैं।

विष्णु भगवान द्वारा लिए गए और लिए जाने वाले अवतार निम्नलिखित हैं:

मत्स्य अवतार

मत्स्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ मछली है। हिन्दू धर्म के अनुसार राजा वैवस्वत मनु सुबह के समय तर्पण करते समय अपने हाथ की हथेली में एक छोटी मछली देखते हैं।

मछली राजा मनु से पूछती है कि क्या उनका धन और उनकी राजा होने की शक्ति मछली को एक अच्छा घर देने के लिए पर्याप्त है। मनु मछली को घर देने के लिए आश्वासन देते हैं। परंतु मछली फैलती जाती है और उसका आकार बढ़ता जाता है।

इस बात से राजा मनु मछली को एक स्थान दे पाने में असमर्थ हो जाते हैं। इस बात से राजा मनु का अपने धन के प्रति अभिमान टूट जाता है। अंत में राजा मनु मछली को समुद्र में छोड़ देते हैं।

जब मनु का अहंकार टूट जाता है तो भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और वह राजा मनु को बाढ़ के कारण दुनिया में आने वाले प्रलय से होने वाले विनाश की सूचना देते हैं। वह मनु को अपनी प्रजा और परिवार को इकट्ठा करके देवताओं द्वारा बनाई गई नाव पर सुरक्षित रखने का निर्देश देते हैं।

जब प्रलय का दिन आता है तो विष्णु एक सींग वाली बड़ी मछली के रूप में प्रकट होते हैं। इस मछली से मनु नाव को बांध देते हैं। इस कारण भगवान विष्णु राजा मनु, उनके परिवार और प्रजा की सुरक्षा करते हैं ताकि आगे आने वाले युगों में भी मनुष्य का जीवन चला रहे।

मत्स्य अवतार

कूर्म अवतार

कूर्म एक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ कछुआ होता है। कूर्म अवतार भगवान विष्णु का एक विशालकाय कछुआ अवतार था। यह बात समुद्र मंथन के समय की है। देवता और असुर अमरता के अमृत को पाने के लिए दूध के सागर का मंथन कर रहे थे।

मंदरा पर्वत का उपयोग वे समुद्र के मंथन के लिए कर रहे थे। कुछ समय बाद जब मंदरा पर्वत डूबने लगे तो विष्णु भगवान ने पर्वत का भार वहन करने के लिए एक विशाल कछुए का रूप धारण किया था।

कूर्म अवतार

वराह अवतार

जय और उनके भाई विजय वैकुण्ठ लोक के द्वारपाल थे। एक बार सनक ऋषि भगवान विष्णु से वैकुण्ठ लोक में मिलने जाते हैं परंतु जय और विजय उन्हें विष्णु भगवान से मिलने से रोक देते हैं।

क्रुद्ध होकर सनक ऋषि दोनों भाइयों को श्राप देते हैं। श्राप के अनुसार वे तीन बार असुर रूप में जन्म लेंगे। विष्णु भगवान के द्वारा उनका वध होने के बाद ही उनका उद्धार होगा। अपने पहले आसुरी जन्म में वे हिरण्यक्ष और हिरण्यकश्यप बनते हैं। विष्णु भगवान वराह अवतार में हिरण्यक्ष को हराने के लिए प्रकट हुए थे।

वराह अवतार

नरसिंह अवतार

नरसिंह नाम से ही स्पष्ट होता है – आधा आदमी और आधा शेर। यह अवतार भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए लिया था। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रल्हाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे।

परंतु हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को ज़रा भी पसंद नहीं करता था अपितु वह तो अपने पुत्र और प्रजा को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकता था और अपनी खुद की भक्ति करने का परामर्श देता था। हिरण्यकश्यप ने सभी को उनके धार्मिक विश्वासों के लिए सताया।

हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था कि उसे न तो कोई जानवर मार सके और न ही कोई मनुष्य। इसलिए भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप को दिए गए वरदान का मान रखने के लिए आधे मनुष्य और आधे शेर वाले नरसिंह भगवान के रूप में अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का उद्धार किया।

नरसिंह अवतार

वामन अवतार

वामन का अर्थ है बौना। प्रल्हाद के पोते, बलि ने अपनी भक्ति और तपस्या के साथ देवलोक के देवता इंद्र को हराने में सक्षमता प्राप्त कर ली थी। बहुत ही प्रबल और सक्षम होने के कारण बलि ने पृथ्वी और स्वर्ग पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।

देवताओं ने भगवान विष्णु से सुरक्षा की प्रार्थना की और इसी लिए भगवान विष्णु ने वामन भिक्षु के रूप में अवतार लिया। राजा बलि के एक यज्ञ के दौरान, वामन रूप में भगवान विष्णु उनके पास पहुंचे और बलि से भिक्षा मांगी। बलि पहले से ही एक दानवीर व्यक्ति थे और उन्होंने वामन भिक्षु से उनकी इच्छा के अनुसार कुछ भी मांगने को कहा।

वामन ने तीन पग भूमि मांगी और बलि अहंकार में हँसते हुए सहमत हो गए। उनके अहंकार का कारण बस इतना था कि उनके पृथ्वी और स्वर्ग के राजा होते हुए भी वामन भिक्षु ने बस तीन पग भूमि ही मांगी थी। तीन पग भूमि तो मनुष्य को मरने के बाद भी कम पड़ जाती है।

और फिर वामन ने अपना आकार विशाल “त्रिविक्रम” रूप में बदल लिया। अपने पहले कदम के साथ उन्होंने धरती को माप लिया और दूसरे के साथ उन्होंने स्वर्ग को माप लिया।

जब तीसरा पग रखने के लिए कोई जगह ही नहीं बची तो बलि समझ गया कि वामन अवतार में भगवान विष्णु ही हैं और उसका अहंकार टूट गया। लेकिन राजा बलि ने अपने वचन के अनुसार तीसरा पग रखने के लिए अपने सिर को आगे किया।

भगवान विष्णु ने बलि से इस प्रकार प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का राजा घोषित किया और अगले मन्वंतर में उन्हें देवलोक के राजा होने का वरदान प्रदान किया।

वामन अवतार

परशुराम अवतार

परशुराम भगवान विष्णु के एक योद्धा के रूप में अवतार थे। वह ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। उन्होंने शिव की तपस्या की और उसके बाद वरदान के रूप में एक कुल्हाड़ी प्राप्त की।

वह हिंदू धर्म में पहले ऐसे व्यक्ति थे जो ब्राह्मण के घर में होने के बाद भी एक क्षत्रिय थे। क्यूंकि हिन्दू धर्म में कोई भी मनुष्य अपने जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्म से जाना जाता है।

एक बार की बात है जब राजा कर्त्तवीर्य अर्जुन और उनका शिकार दल परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि के आश्रम में रुके। ऋषि ने दिव्य गाय “कामधेनु” की सहायता से उन सभी को खाना खिलाया। राजा ऐसी चमत्कारी गाय को देखकर लालच में आ गए और उन्होंने ऋषि से गाय की मांग की। लेकिन जमदग्नि ऋषि ने गाय देने से मना कर दिया।

क्रोधित होकर राजा कर्त्तवीर्य अर्जुन ने उसे बलपूर्वक ले लिया और आश्रम को नष्ट कर दिया। इस प्रकार वह गाय को साथ लेकर चले गए। तब परशुराम ने आक्रोश में क्रुद्ध होकर राजा को उनके महल में मार डाला और उनकी सेना को नष्ट कर दिया।

इसके बाद बदला लेने के लिए कर्त्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों ने जमदग्नि ऋषि को मार डाला। इस बात से परशुराम इतने क्रुद्ध हो गए कि उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी पर प्रत्येक क्षत्रिय को मारने का संकल्प लिया। इस प्रकार उन्होंने उनके रक्त से पांच झीलों को भर दिया। अंत में उनके दादा ऋषि रुचिका उनके सामने आये और उन्हें रोका। परशुराम एक चिरंजीवी है और उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। माना जाता है कि वह आज भी महेंद्रगिरि में तपस्या कर रहे हैं।

उन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार अपनी शक्तिशाली कुल्हाड़ी फेंककर कर्नाटक और केरल के तटीय क्षेत्र बनाने का श्रेय भी दिया जाता है। जिस स्थान पर कुल्हाड़ी समुद्र में उतरी, उसका जल विस्थापित हो गया और जो भूमि इस प्रकार उभरी वह कर्नाटक के तट और पूरे केरल के रूप में जानी जाने लगी।

परशुराम अवतार

राम अवतार

भगवान विष्णु के राम अवतार को नैतिकता और नियमों का पालन करने वाले अवतार के रूप में जाना जाता है। भगवान राम अयोध्या के राजकुमार और राजा थे। वह हिंदू धर्म में आमतौर पर पूजे जाने वाले भगवान विष्णु के अवतार हैं और अवतार होने के बावजूद दिव्य शक्तियों के बिना एक सामान्य राजकुमार थे।

उनके जीवन की कहानी हिंदू धर्म में सबसे व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले ग्रंथों में से एक “रामायण” में वर्णित है। भगवान श्री राम की पत्नी माता सीता (लक्ष्मी माता का एक अवतार) जब श्री राम और श्री राम के भाई लक्ष्मण जी के साथ अपने राज्य से निर्वासन में रह रहीं थी तो उनका लंका के राक्षस राजा रावण ने अपहरण कर लिया था।

इस के बाद राम ने वनवास में रहते हुए एक सेना बनाई और लंका की यात्रा की। राक्षस राजा रावण को मार डाला और सीता को बचाया। राम और सीता घर लौट आए। अयोध्या राज्य में राजकुमार राम की वापसी का दिन पूरे भारत में दिवाली के त्योहार में मनाया जाता है।

राम अवतार

कृष्ण अवतार

भगवान श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र और यशोदा और नंद के पालक पुत्र थे। हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय और अक्सर पूजे जाने वाले भगवान श्री कृष्ण ही हैं। वह विशेष रूप से अपने मामा कंस के वध लिए जाने जाते हैं और महाभारत के मुख्य नायक हैं।

श्री कृष्ण प्रेम, कर्तव्य, करुणा और चंचलता जैसे कई गुणों का प्रतीक हैं। भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मनाया जाता है।

कृष्ण अवतार

भगवान बुद्ध अवतार

भगवान बुद्ध को बौद्ध धर्म के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। गौतम बुद्ध को आमतौर पर हिंदू धर्म में भगवान श्री विष्णु के अवतार के रूप में शामिल किया जाता है। भगवान बुद्ध को कई बार हिंदू धर्मग्रंथों में एक उपदेशक के रूप में बताया जाता है।

भगवान बुद्ध ने राक्षसों और विधर्मियों को आत्म ज्ञान का रास्ता बताया। उन्होंने अंगुलिमाल जैसे राक्षशों को अपना शिष्य बनाया। भगवान बुद्ध की प्रशंसा एक दयालु शिक्षक के रूप में की जाती है, जिन्होंने अहिंसा के मार्ग का प्रचार किया।

हालांकि बहुत लोग भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हैं परंतु कुछ ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि बुद्ध भगवान विष्णु का अवतार नहीं थे। इसी वजह से महाराष्ट्र और गोवा में, विट्ठल जी को विष्णु के नौवें अवतार के रूप में पूजा जाता है। उड़ीसा के कुछ उड़िया साहित्यिक कृतियों में भगवान जगन्नाथ को नौवें अवतार के रूप में माना गया है।

भगवान बुद्ध अवतार

कल्कि अवतार

हिन्दू धर्म ग्रंथों में कल्कि अवतार को विष्णु भगवान के अंतिम अवतार के रूप में वर्णित किया गया है। कल्कि अवतार प्रत्येक कलियुग के अंत में प्रकट होते हैं। उन्हें एक सफेद घोड़े के ऊपर और तलवार के साथ वर्णित किया गया है। वह तब प्रकट होंगे जब संसार में केवल अराजकता, बुराई और उत्पीड़न प्रबल होगा। धर्म का जब संसार से नाश हो जाता है, उनका अवतार तब प्रकट होता है। भगवान विष्णु अपना यह अवतार सत्य युग और संसार के अस्तित्व के एक अन्य चक्र को फिर से शुरू करने के साथ साथ कलियुग को समाप्त करने के लिए लेते हैं।

कल्कि अवतार

निष्कर्ष

तो यह थे भगवान विष्णु के सभी अवतार क्रमागत रूप में। इस लेख में भगवान विष्णु के सभी अवतारों के बारे में बताया गया है। आशा करता हूँ आपको यह लेख अच्छा लगा होगा और आपके ज्ञान में ज़रूर वृद्धि हुई होगी।

स्वस्थ रहें, खुश रहें…

जय श्री कृष्ण!

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इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें - विष्णु भगवान ने महाभारत का युद्ध क्यों करवाया?

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