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हिन्दू धर्म विश्वकोश (Hindu Dharma Encyclopedia)

Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) Lyrics In Marathi And Sanskrit

Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) Lyrics In Marathi And Sanskrit

स्वामी समर्थ, जिन्हें अक्कलकोट के स्वामी के रूप में भी जाना जाता है, दत्तात्रेय परंपरा के एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु थे। वह महाराष्ट्र, भारत सहित विभिन्न भारतीय राज्यों में एक व्यापक रूप से ज्ञात आध्यात्मिक व्यक्ति हैं। वह उन्नीसवीं सदी के दौरान रहते थे।

स्वामी समर्थ ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और अंततः वर्तमान महाराष्ट्र के एक गाँव अक्कलकोट में अपना निवास स्थान स्थापित किया। माना जाता है कि वह शुरू में 1856 में सितंबर या अक्टूबर के दौरान बुधवार को अक्कलकोट पहुंचे थे। वह लगभग 22 वर्षों तक अक्कलकोट में रहे।

उनका वंश और मूल अस्पष्ट रहता है। शिरडी के साईं बाबा और शेगांव के गजानन महाराज सहित कुछ अन्य भारतीय संतों और आध्यात्मिक हस्तियों की भी इसी तरह अज्ञात उत्पत्ति हुई है।

किंवदंती के अनुसार, एक बार जब एक शिष्य ने स्वामी से उनके जन्म के बारे में एक प्रश्न पूछा, तो स्वामी ने उत्तर दिया कि उनकी उत्पत्ति एक बरगद के पेड़ (मराठी में वात-वृक्ष) से ​​हुई है। एक अन्य अवसर पर स्वामी ने कहा था कि उनका पहले का नाम नृसिंह भान था।

यहाँ पर Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) दो भाषाओं में दिए गया है। आप मराठी और संस्कृत भाषा में से किसी भी भाषा में Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) को पढ़ सकते हैं।

Benefits of Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र के लाभ)

Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) के पाठ से गंभीर बीमारी, आर्थिक समस्या, लंबे समय तक बेरोजगारी, कई वर्षों के प्रयास के बाद विवाह न होना, विवाह के कई वर्षों के बाद संतान न होना, अदालती समस्याएं और कोई भी गंभीर समस्या जिसे हम आम तौर पर “संकट” कहते हैं, को ठीक करने में मदद मिलती है।

जो कोई व्यक्ति सच्चे मैं से Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) का पाठ करता है उसे यह शक्तिशाली Swami Samarth Stotra (स्वामी समर्थ स्तोत्र) संकट से उबरने में मदद करता है।

Charitra Sri Swami Samarth Stotra (चरीत्र श्री स्वामी समर्थ स्तोत्र) In Marathi

Charitra Sri Swami Samarth Stotra (चरीत्र श्री स्वामी समर्थ स्तोत्र) In Marathi

|| श्री स्वामी कृपा स्तोत्र ||

|| ॐ श्री सद्गुरु अक्कलकोट स्वामी समर्थ ||

|| ॐ श्री गणेशाय नम: || ॐ श्री सरस्व़त्यै नम: || ॐ श्री सर्वशक्तिमूर्तये नम: ||

नमो परात्पर जगत्‌गुरु | आता नमू मयुरवाहिनी |
जी शब्दविश्वाची स्वामिनी | वंदन करुया तियेसी ||1

जो सकल विश्वाचा आधार | निर्गुण आणि निराकार |
तो ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वर | सद्भावे वंदू त्रैमूर्ती ||2||

त्रैमूर्तिचा महिमा अपार | गुरुचरित्री वर्णिला साचार |
स्तुति करता अपरंपार | वेद चारी शिणले ||3||

कर्दलवनी झाले गुप्त | साक्ष ठेवून गाणग क्षेत्र |
निर्गुण पादुका पवित्र | भक्तांसाठी ठेवियल्या ||4||

पंढरीचा पांडुरंग | ज्यासी आवडे संतसंग |
तारिले तुक्याचे अभंग | त्यासी प्रणिपात अंतरी ||5||

करु या साष्टांग दंडवत | त्रैमूर्ती श्रीगुरुदत्त |
अक्कलकोटी यति समर्थ | सद्भावे नमू अंतरी ||6||

आता श्री स्वामीरायांचे अख्यान | भाविकतेने करा श्रवण |
सर्वसुखाचे निधान | लाभेल स्तविता सर्वांसी ||7||

भक्तीचा करुनी सोहळा | दाखवी अगम्य लीला |
ऐसी ख्याती त्रैलोक्याला | मी पामर काय वर्णू ||8||

नृसिंहसरस्वती गुरुस्वामी | गुप्त जाहले कर्दलवनी |
येतां पुनश्च धर्मा ग्लानी | अक्कलकोटी अवतरले ||9||

कर्दलवनी गुप्त जाहला | अबू पहाडी प्रगटला |
अवधूत मानवरुपे आला | अक्कलकोटी माझारी ||10||

श्री गुरुस्वामी यति पाहिला | मूर्तिमंत तेजाचा पुतळा |
कंठी रुळती रुद्राक्षमाळा | पद्मासनी स्थित असे ||11||

शांत गंभीर दिसे रुप | हेमसंकाश तनु अनुरुप |
नेत्रकमलांची कृपाझेप | भक्तावरी सर्वदा ||12||

भाली शोभे कस्तुरी तिलक | साजिरे दिसे नासिक |
ओष्ठ हनुवटी सुंदर मुख | चंद्रापरी दिसतसे ||13||

समुत्कंठ पाहू चला | आजानुबाहू शिव भोळा |
कंठा भूषवी त्रिदलमाला | नृसिंहभान गुरुस्वामी ||14||

निम्ननाभी दिठी सुंदर | धूर्जटी कौपीन कटीवर |
दत्त नरहरी यतिवर | धीपुरी प्रगटलासे ||15||

अखिल विश्वी विश्वंभरु | भक्तजन सुरतरू |
या हो सकल पादपद्म धरु | देहबुध्दी करु दुर ||16||

मम हृदयीं ठसो मूर्ति | शंख चक्रांकित गदा हाती |
कामधेनुसह चतुर्वेद मूर्ती | सदैव राहो अंतरी ||17||

अबूगिरीवरुनी हृद्कमली | वेगे येई गुरुमाऊली |
रत्नखचित सिंहासनी बैसली | भक्तकाज करावया ||18||

आतां करितों तुझी पूजा | रमावरा अधोक्षजा |
सप्रेमें क्षाळितो पदरजा | अर्ध्य देई स्वकरी ||19||

मधुर सुवासिक शीतळ | गंगोदक जळनिर्मळ |
पंचामृत स्नान सचैल | निजहस्ते घालितो ||20||

स्नान करुनी, करा आचमन | भरजरी पितांबर नेसून |
शालजोडी पांघरुन | सुखे घेई स्वामीया ||21||

चंद्रोपम उपवीत घालुनी | रत्नाभरणे, कौस्तुभमणी |
कस्तुरी टिळा लेवुनी | चंदन उटी लावावी ||22||

निराकार, निर्गुण गोपाळा | कंठा भूषवी तुलसीमाळा |
बिल्व-शमी दुर्वांकुराला | सहस्त्रनामें अर्पितो ||23||

अष्टगंध, बुक्का सुगंध | सौरभे होती दिशा धुंद |
अर्पितो दीप स्वानंद | मानुनी घेई गुरुराया ||24||

रत्नखचित चौरंगावरी | सुवर्णताटी पक्वाने सारी |
दहि-दूध लोणचे कोशिंबिरी | पंचखाद्य नैवेद्य सेवा जी ||25||

कर्पूरोदके धुवोनि हस्त | घालितो करी पंचामृत |
प्राणापान, व्यान, उदान समस्त | तूचि अससी स्वामिया ||26||

गुरुमूर्ती तू षड्रस | मीहि त्यांस ऐक्य सहज |
दिव्य सच्चित रुप निज | वेदपूर्ण भरले असे ||27||

वदनसुवासा तांबूल | त्रयोदशगुणी निर्मळ |
मुखशुध्दिस नारळ | घ्यावा आता गुरुराया ||28||

भक्तवत्सला स्वामिराजा | अंगिकारावी माझी पूजा |
नमस्कारोनी अधोक्षजा | श्रीमुख बघतो न्याहाळुनी ||29||

तव आरती ओवाळिता | नासती अनंत ब्रम्हहत्या |
वेद बोलतो वाणी सत्या | त्रिवार ऐसे सत्यचि ||30||

सनकादिक मुनी सुरवर | करिता स्वामींचा जयकार |
मंत्रपुष्पांचा संभार | जडजीवासी उध्दरी ||31||

वेदघोष अति सुस्वर | प्रदक्षिणा घाली वारंवार |
प्रेमे साष्टांग नमस्कार | अनंतासी दंडवत ||32||

अनंतकोटी ब्रम्हांडनायका | अनादि स्वरुपा गुरुराया |
लागलो आता तव पाया | भक्तकृपाळा उध्दरी ||33||

छत्रचामरे वारीन | गंधर्वगान समर्पिन |
सुस्वर वाद्ये वाजवून | तुष्ट करितो तुजलागी ||34||

सुदिव्य, सुखशय्या मृदुल | ठेवी सुखासनी पदकमल |
चरण, अहर्निश चुरीन | सेवा मानून घ्यावी जी ||35||

सत्‌शिष्य भजनी रंगती | भजनानंदी विसावती |
संतसंगी जडो प्रीती | हेचि मागणे स्वामीया ||36||

शेष, व्यास, सरस्वती | गुणवर्णन करीती महामती |
भक्तस्तवन ऐकुनी श्रीपती | प्रसन्न व्हावे सत्वरी ||37||

विश्वंभर तू सौख्यराशी | भक्तकौतुक पुरविशी |
योगक्षेम चालविसी | ऐसी ख्याती त्रिभुवनी ||38||

निजनिर्माल्य प्रसाद देसी | उच्छिष्ट आंस सर्वांसी |
पूर्वपुण्ये येती फळासी | सेवा गुज ऐसे हे ||39||

सृष्टि-उत्पत्ति-स्थिती-संहारा | अवतार तुझाचि गुरुवरा |
ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वरा | स्वामीरुपी शोभसी ||40||

रवि-चंद्रासी तेजाळले | ते तेजही तुजकडोनी आले |
निज-भक्त कार्य सगळे | तव प्रसादे लाभते ||41||

इह परत्र सौख्य देसी | कल्पतरुसम शोभसी |
जैसा भाव धरावा मानसी | तैसा त्यासी अनुभव ||42||

शिव-विष्णु-शक्ति-गणपति | स्वामीरुपे सारे शोभती |
निगमागमही स्तविती | सत्यज्ञानानंद तू ||43||

त्रिविधताप हे निवारिसी | दीनजना उध्दरिसी |
क्षमा करावी दासासी | मागणे हेचि जीवनी ||44||

जीवात्मज्योति उजळुनी | तव प्रकाशे प्रकाशुनी |
पाहते नित्यचि स्तवनी | स्वामीराजा ||45||

ऐशी अतर्क्य स्वामीलीला | वणिर्ता वेदही शिणला |
तेथे मज पामराला | कैसी शक्ती ||46||

काया वाचा मानसी | इंद्रियाधीकृत कर्मासी |
अर्पितो परात्परा तुजसी | सारी सेवा ||47||

रामकृष्ण तू सर्वसाक्षी | पृथ्वीवर अवतार घेसी |
हरावया भूभारासी | पंढरी वास केला ||48||

पंढरीस श्रीविठ्ठल | गिरीवर विष्णु सोज्वळ |
करवीरी लक्ष्मी प्रेमळ | विश्वेश्वर काशीवासी ||49||

कलियुगी नृसिंह-सरस्वती | अत्रिनंदन गाणग क्षेत्री |
गुरु माणिक प्रभूही तूचि | अक्कलकोटी गुरुराया ||50||

जे भक्त तुजला भजती | अहर्निश राहे त्यांचे पाठी |
भक्त संरक्षणासाठी | अक्कलकोटी वास केला ||51||

स्तविता ही स्वामी माऊली | पापे अनंत जन्माची जळाली |
वाढविसी प्रेमसाऊली | वात्सल्य नांदे सर्वदा ||52||

असत्‌वृत्ति जावो विलया | सद्‌वृत्ती पावो जया |
सकलजनासी देवराया | सौख्य लाभो जगी या ||53||

गोवर्धन गिरी धरिसी | अग्निही तू प्राशिसी |
पार्थगुरु सारथी होसी | महिभार हरावया ||54||

अविनाशी अवतार दत्त | जगती आहे विख्यात |
अघटित लीला दावित | गाणगापुरी बैसला ||55||

गुरुतत्व गूढ सार | जाणताती भक्त थोर |
तोचि प्रज्ञापुरी यतिवर | भक्तकाजी रंगला ||56||

हे स्तोत्र करिता पठण | त्यासी न बाधे चिंता दारुण |
भवभय दु:खाचे निरसन | स्वामीकृपे होईल ||57||

अनन्यभावे करा स्मरण | साक्षात्कारे घ्यावे दर्शन |
हेचि सद्गुरु वचन | असत्य न होई सर्वथा ||58||

ठेवुनिया श्रध्दा भाव | मनी आळवावा गुरुदेव |
भक्तासाठी घेई धाव | रक्षणासी सिध्द सदा ||59||

वटवृक्षतळी जाण | श्रीसद्गुरु प्रतिमा ठेवून |
यथासांग करावे पूजन | षोडशोपचारे आदरे ||60||

मग करावे स्तोत्र पठण | नित्यश: एक आवर्तन |
अखंड करिता तीन मास पूर्ण | साक्षात् सद्गुरु भेटेल ||61||

श्री स्वामी समर्थ नाम | अनंत कोटींचा कल्पद्रुम |
सकल संतांचा विश्राम | नामस्मरणीं नांदतो ||62||

स्वामीकृपा होता क्षणी | मुक्याते फुटेल वाणी |
पंगु जाईल उल्लंघुनी | उत्तुंग गिरीही लीलया ||63||

ऐसा महिमा अगाध | एकमुखी वर्णिती वेद |
श्री स्वामी स्तोत्र केले सिध्द | आला धावून झडकरी ||64||

स्वामी प्रेमळ माउली | जैसे वत्साते गाऊली |
तुझी स्तुति स्त्रोते गायिली | तव प्रेमळ कृपेने ||65||

तूचि श्री व्यंकटेश | तुचि महारुद्र महेश |
अनंतकोटी जगदीश | श्री स्वामी समर्था सर्व तूचि ||66||

उत्पति, स्थिती आणि लय | तूचि सकलांचा आशय |
गुरूदेवा तुचि मम आश्रय | उपासका सांभाळी ||67||

तव करितां नामस्मरण | लाभे चित्ता समाधान |
तव चरणाशी वंदन | देवाधिदेवा समर्था ||68||

जे नर करतील आवर्तन | मनकामना त्यांची होईल पूर्ण |
सद्भक्तिचे अधिष्ठान | नित्य ठेवूनी अंतरी ||69||

हा ग्रंथ ज्याचे घरी | तेथे अन्नपूर्णा वास करी |
सुख संपत्ति संसारी | लाभेल भाविकां निश्चिती ||70||

करितां ग्रंथाचे पठण | दुःख दारिद्रय जाईल पळून |
भक्त सेवेसाठी येईल धावून | दयावंत स्वामीराज ||71||

येथे ठेवूनिया विश्वास | करावे ग्रंथ पारायणास |
दृष्टांत देवोनि त्वरेस | सांभाळीन तयालागी ||72||

हे सद्गुरूंचे सत्यवचन | श्रोते ऐका ध्यान देऊन |
पुरवील मोक्षसाधन | एकचि माझा स्वामीराज ||73||

विश्वामित्र गोत्र कुलोत्पन्न | देशपांडे उपनामाभिधान |
नाम माझे असे वामन | सद्गुरुचरणी लीन सदा ||74||

प्रतिभानुज हे संबोधन | घेतले श्रीगुरूने लिहवून |
झाली सेवा सफल पूर्ण | पूर्व सुकृतानुसार ||75||

स्तुतिस्तोत्राचा गुंफिला हार | भक्तिमंजिरी त्यावर |
घातली वैजयंती सुंदर | कंठी श्रीगुरुरायाचे ||76||

श्रीस्वामीराज स्तोत्र ग्रंथ | जाहला असे समाप्त |
मज पामरे वदविले गुरुनाथे | त्यांचे चरणी दंडवत ||77||

श्री स्वामी समर्थ दत्त | मंत्र हा मनी घोषित |
झाले चित्त अवघे तृप्त | पुनश्च चरणी दंडवत ||78||

देह अवघे अक्कलकोट | आत्मस्वरुपी श्री स्वामीसमर्थ |
त्यांचे ठायी दंडवत | वारंवार घालीतसे ||79||

इति श्रीस्वामीराज सगुण | भक्तांचे वैभव पूर्ण |
प्रतिभानुज करीतसे वर्णन | साष्टांग प्रणिपात करोनी ||80||

|| श्री स्वामी समर्थार्पणमस्तु ||

|| इति श्री अक्कलकोट स्वामी समर्थ स्तोत्र संपूर्णम् ||


Ichhapurti Sri Swami Samarth Stotra (इच्छापूर्ति श्री स्वामी समर्थ स्तोत्र) In Marathi

Ichhapurti Sri Swami Samarth Stotra (इच्छापूर्ति श्री स्वामी समर्थ स्तोत्र) In Marathi

ॐ श्री अक्कलकोटस्वामी समर्थास नम: |

ॐ नमो श्रीगजवदना | गणराया गौरीनंदना |
विघ्नेशा भवभयहरणा | नमन माझे साष्टागी || १||

नंतर नमिली श्री सरस्वती | जगन्माता भगवती |
ब्रम्ह्य कुमारी वीणावती | विद्यादात्री विश्वाची || २||

नमन तैसे गुरुवर्या | सुखनिधान सदगुरुराया |
स्मरूनी त्या पवित्र पायां | चित्तशुध्दी जाहली || ३||

थोर ॠषिमुनी संतजन बुधगण आणि सज्जन |
करुनी तयांसी नमन | ग्रंथरचना आरंभिली ||४||

श्री अक्कलकोट स्वामीराया स्मरुनी तुमच्या पवित्र पायां |
स्तोत्र महात्म्य तुमचे गावया | प्रारंभ आता करतो मी || ५||

नांव गांव खुद्द स्वामींचे | किंवा त्यांच्या मातापित्यांचे |
कोणालाच ठाऊक नाही साचें | अंदाज मात्र अनेक || ६||

त्यांच्या जन्मासंबंधाने, आख्यायिका लिहिली एकानें |
तीच सत्य मानुनी प्रत्येकाने | समाधान मानावे || ७ ||

म्हणे उत्तर भारती एका स्थानी | घनदाट कर्दळीच्या बनीं |
स्वामी प्रगटले वारुळांतुनी | लाकुडतोड्याच्या निमित्ताने || ८ ||

कुर्‍हाडीचा घाव बसून, त्याचा राहिला कायमचा वण |
आगळी ती अवतार खूण | प्रत्यक्ष पाहीली सर्वांनी || ९ ||

एका भक्तानें केला प्रश्न, स्वामी तुमची जात कोण |
तेव्हां दिलें उत्तर छान | स्वमुखेंच समर्थानी || १० ||

मी यजुवेदी ब्राम्हण | माझे नांव नृसिंहभान |
काश्यप गोत्र राशी मीन | ऐसें स्वामी म्हणाले ||११ ||

खरें खोटें देव जाणे | बरें नाही खोलांत शिरणें |
ईश्ववरी करणीची कारणें | आपण काय शोधावी || १२ ||

दत्तात्रया तुम्ही निराकार निर्गुण | नरदेह तरीही केला धारण |
सकळं भूप्रदेश केला पावन | आपुल्या चरणस्पर्शाने || १३ ||

नंतर स्वामी निघाले तिथून | तीर्थयात्रेसी केले प्रयाण |
दत्तात्रयाचे प्रत्येक ठिकाण | प्रत्यक्ष फिरुनी पाहिलें || १४ ||

दत्तवास्तव्य जेथे निरंतर | तो थोर पर्वत गिरनार |
तेथेच गेले अगोदर | नंतर फिरले इतरत्र || १५ ||

यात्रेचे प्रवास संपले | तेव्हा मंगळवेढ्यासी आले |
तेथे थोडे दिवस राहिले | दामाजीच्या गांवात || १६ ||

काही काळ तिथे गेला | पुण्यवंतांना प्रभाव कळला |
जनसमुदाय भजनीं लागला | साक्षात्कारी यतीच्या || १७ ||

पुढे अक्कलकोट हें | वास्तव्याचे झाले ठिकाण |
अखेरपर्यंत तिथेंच राहून | अनंत लीला दाखविल्या || १८ ||

तेजःपुंज शरीर गोमटें, सरळ नासिका कान मोठे |
आजानुबाहू कौपिन छोटे | दिगंबर असती अनेकदां || १९||

स्वामी समर्थ अक्कलकोटचे | चवथे अवतार दत्तात्रयाचे |
तीन अवतार यापूर्वीचे | गुरुचरित्री वर्णिले || २० ||

पहिले दत्तात्रेय, दुसरे श्रीपादवल्लभ | नृसिंहसरस्वती हे तिसरे नांव शुभ |
गाणगापूर दर्शन देवदुर्लभ | जागृत दत्तस्थान ते || २१ ||

तेथे होउनी साक्षात्कार | पहावयासी येती चवथा अवतार |
अक्कलकोट पुण्यभूमि थोर | जेथे प्रत्यक्ष दत्त वसे || २२ ||

अक्कलकोटी नित्य राहूनी | अगाध गूढ लीला करूनी |
भक्तांसी साक्षात्कार देऊनी | गुप्त झाले अनेकदा || २३ ||

नास्तिक होते कोणी त्यांना | चमत्कार दाखविले नाना |
शेवटी कराया क्षमायाचना | लागले स्वामी चरणांसी || २४ ||

स्वामी सर्वसाक्षी उदार | साक्षात दत्ताचे अवतार |
कधी सौम्य कधी उग्रतर | स्वरुप दाविलें दासांना || २५ ||

ज्यांनी त्यांची सेवा केली | त्यांची कुळे पावन झाली |
जन्मोजन्मीची पापें जळली | पुण्यराशी मिळाल्या || २६ ||

सत्पुरुषाची करणी अगाध | वाणी गूढ निर्विवाद |
झाल्याविण कृपाप्रसाद | अर्थ त्याचा समजेना || २७ ||

स्वामींचे बोलणे थोडें | जणूं काय कठीण कोडें |
अर्थ काढावे तितुके थोडे | त्यात भविष्य असे भरलेलें || २८ ||

जाणणारे तेच जाणिती | घेती त्यांच्या संकेताची प्रचिती |
ज्याचा तोच उमजे चित्तीं | इतरां अर्थबोध होईना || २९ ||

कोणाकोणाला पादुका दिधल्या | कोणाला वाहिल्या लाखोल्या |
कोणाच्या मस्तकी मारिल्या | पायांतल्या वाहाणाही || ३० ||

ज्याच्या त्याच्या भाग्याप्रमाणें | स्वामीनी दिले भरपूर देणें |
कोणा पुत्र कोणा सोनेनाणे | कोणा जीवनदानही दिलें त्यांनी || ३१ ||

अनेकांच्या व्याधी केल्या दूर | अनेकांना दाखविले चमत्कार |
अनेकांना शिक्षा घोर | केल्या त्यांनी अनेकदा || ३२ ||

सर्व साक्षी अंतर्ज्ञानी | पूर्णब्रम्ह्य ब्रम्ह्यज्ञानी |
म्हणूनच हव्या त्या ठिकाणी | दर्शन दिधलें भक्ताना || ३३ ||

न सांगता सर्व जाणिले | ज्याचें त्याला योग्य उत्तर दिलें |
लोण्याहुनी मृदु ह्रदय द्रवलें | दु:खी कष्टी जीवांसाठी || ३४ ||

दयेचा अथांग सागर | भक्तांसाठी परम उदार |
अनेकांचा केला उध्दार | सदुपदेश दिक्षा देऊनी || ३५ ||

स्वामीराया दत्तात्रेया | तुमच्या कृपेची असावी छाया |
हीच प्रार्थना तुमच्या पायां | मागणे नाही आणखी || ३६ ||

मजवरी होता कृपादृष्टी | दत्तमय भासेल सर्व सृष्टी |
सुखसंपत्तीची होईल वृष्टी | सकल सिध्दी लाभती || ३७ ||

ऐसी श्रध्दा माझे मनी | उपजली आहे आतां म्हणुनीं |
मिठी घातली तव चरणीं | धाव पाव समर्था तूं || ३८ ||

तुमची करावी कैसी सेवा | हे मज ठाऊक नाही देवा |
ओळखुनी माझ्या भोळ्या भावा | वरदहस्त ठेवा मस्तकीं || ३९

संसार तापें पोळलों भारी, दूर करा ही दु:खे सारी |
तुमच्यावीण माझा कैवारी | अन्य कोणी दिसेना || ४० ||

तुमचे पाय माझी काशी | पंढरपूर सर्व तीर्थे तशी |
आहेत तुमच्या चरणांपाशी | मग यात्रेस जाऊ कशाला || ४१ ||

अक्कल्कोटचे समर्थ स्वामी | रंगून जातां त्यांचे नामीं |
ब्रम्हा विष्णू शिवधामी | सर्व भक्ती पोंचते || ४२ ||

स्वामी समर्थांची मूर्ति आठवावी | त्यांचे पायी दृढ श्रध्दा ठेवावी |
आणी आपली भावना असावी | मनोभावें ऐसी कीं || ४३ ||

पाठीशीं आहेत अक्कलकोट स्वामी | उगीच कशास भ्यावे मी |
काहींच पडणार नाही कमी | समर्थांच्या दासासी || ४४ ||

भाग्यवान ते जे लागले भजनी | वादविवाद केले पंडितांनी |
मग एकमुखानें सर्वांनी | मान्य केली थोर योग्यता || ४५ ||

वेदांताचा अर्थ लाविला | पंडितांचा ताठा जिरविला |
भाविक भक्तांना दिधला | धीर अनेक संकटी || ४६ ||

स्वामी तुमचे चरित्र आगळें | अतर्क्य अलौकिक जगावेगळे |
त्यांत प्रेमाचे सागर सांठले | धन्य धन्य ज्यांना उमजलें ते || ४७ ||

बाळप्पा चोळप्पादि सर्वांनी | लहान मोठ्या अधिकार्‍यांनी |
गरीबांपासून श्रीमंतांनी | सेवा केली यथाशक्ती || ४८ ||

जे जे तुमच्या भजनीं लागले | त्यांचे त्यांचे कल्याण झालें |
हवें हवें ते सारें मिळाले | श्री समर्थ कृपेनें || ४९ ||

पुढे संपल्या लीला संपले खेळ | ताटातुटीची आली वेळ |
स्वामी म्हणजे परब्रम्ह्य केवळ | परब्रह्म्यांत मिळालें || ५० ||

शके अठराशें बहुधान्यनाम संवत्संरी | चैत्र वद्य त्रयोदशी मंगळवारी |
पुण्य घटिका तिसर्‍या प्रहरी | स्वामी गेले निजधामा || ५१ ||

बोलता बोलता आला अंतकाळ | प्रकृतीत झाली चलबिचल |
क्षणात पापण्या झाल्या अचल | निजानंदी झाले निमग्न || ५२ ||

वचनपूर्तींसाठी निर्णयानंतर | पांचवा दिवस शनिवार |
स्वामी प्रगटले निलेगांवाबाहेर | दिलें दर्शन भाऊसाहेबांसी || ५३ ||

ऐसा यती दत्त दिगंबर | संपवूनी आपूला अवतार |
निजधामा गेला निरंतर | भक्त झाले पोरके || ५४ ||

बातमी जेव्हा सर्वत्र पसरली | जनता शोकाकुल झाली |
सर्व भक्तमंडळी हळहळली | अन्नपाणीही सुचेना || ५५ ||

गावोगांवीची भक्तमंडळी | अक्कलकोटी गोळा झाली |
समर्थांची समाधी पाहिली | आपल्या साश्रू नयनांनी || ५६ ||

चवथा अवतार संपला | तरीही चैतन्यरुपें तिथेच राहिला |
अक्कलकोट पुण्यभूमीला | क्षेत्रत्वा प्राप्त जाहलें || ५७ ||

अजूनही जे येती समाधीदर्शना | त्यांच्या व्याधी आणी विवंचना |
संकटे आणी दु:खे नाना | स्वामी दूर करतात || ५८ ||

याचे असती असंख्य दाखले | अनेकांनी अनुभवले |
म्हणूनी महाराजांची पाऊले | आपणही वंदूंया || ५९ ||

नम्र होउनी त्यांचे चरणीं | कळकळने करुंया विनवणी |
स्वामींना यावी करुणा म्हणूनी | प्रार्थना त्यांना करुंया || ६० ||

जयजय दत्ता अवधूता | अक्कलकोट स्वामी समर्था |
सदगुरु दिगंबरा भगवंता | दया करी गा मजवरी || ६१ ||

अनेकांच्या संकटी आला धावून | आता माझी प्रार्थना ऐकून |
समर्थराया देई दर्शन | दूर लोटु नको मला || ६२ ||

व्यवहारी मी जगतो जीवन | अनेक पापें घडती हातून |
तव नामाचें होते विस्मरण | क्षमा याची असावी || ६३ ||

सदगुरुराया कृपा करावी | तुमची सेवा नित्य घडावी |
ऐसी बुध्दी मजला द्यावी | पापे सर्व पळावी || ६४ ||

सुखाचें व्हावे जीवन ऐहिक | धनदौलत मिळावी, मिळावे पुत्रपौत्रसुख |
गृहसौख्य आणी वाहनसुख | अंती सदगति लाभावी || ६५ ||

तुम्ही प्रत्यक्ष कैवल्य ठेवा | म्हणुनी याचना करतों देवा |
उदार मनाने वर द्यावा | आणी तथास्तु म्हणावे || ६६ ||

तुमची होतां कृपा पूर्ण | जीवन माझें होईल धन्य |
म्हणुनी आलों तव पायी शरण | दत्तराया दयाघना || ६७ ||

मी एक मानव सामान्य | तुमची सेवा नित्य घडावी म्हणून |
या पोथीचें करितों वाचन | दान द्या तुमच्या कृपेचे || ६८ ||

वेडीवाकुडी माझी सेवा | स्वीकारावी स्वामी देवा |
वरदहस्त नित्य मस्तकीं ठेवा | हीच अंती विनंती || ६९ ||

शके अठराशे नव्याण्ण्व वर्षी | चैत्रमासीं शुक्लपक्षी |
शुभ रामनवमी दिवशी || पोथी पूर्ण झाली ही || ७० ||

स्वामींचे चित्र ठेऊनी पुढ्यांत | किंवा स्वामींच्या एखाद्या मठांत |
बसुनी ही पोथी वाचावी मनांत | इच्छा सफल होईल || ७१ ||

माणिकप्रभू , साई शिरडीश्वर | आणी अक्कलकोट्चे दिगंबर |
एकाच तत्वाचे तीन अविष्कार | भेद त्यांत नसे मुळी || ७२ ||

एकाची करितां भक्ती | तिघांनाही पावते ती |
ऐसी ठेऊनी आपली वृत्ती | पोथी नित्य वाचावी || ७३ ||

या पोथीचे करितां नित्य पठण | प्रत्यक्ष स्वामी होतील प्रसन्न |
करतील सर्व मनोरथ पूर्ण | सत्य सत्य वाचा ही || ७४ ||

ॐ श्री अक्कलकोटस्वामी समर्थापर्णमस्तु || शुभं भवतु || ॐ शांति:शांति:शांति: || (ओवी संख्या ७४ )

|| श्री अक्कलकोटस्वामी स्तोत्र माहात्म्य सम्पूर्ण ||


Sri Akkalkot Swami Samarth Stotra (श्री अक्कलकोट स्वामी समर्थ स्तोत्र) In Sanskrit

Sri Akkalkot Swami Samarth Stotra (श्री अक्कलकोट स्वामी समर्थ स्तोत्र) In Sanskrit

जन्मशून्यो दिव्यरूपो रवीभा सुरवंन्दितः ।

आदर्शव्रत् दृश्यसूक्ष्म गंडयुग्म सुमंडितः ।

सुनासो निमिषः सुभ्रूः करूणापूर्ण-लोचनः

शरद्पूर्णेन्दु वदनो-स्फाटिक्यमणि भूषितः

सुंदरांगो-दिव्यबाहू कटिमेखल शोभिता

कौपिनधारी रंभोरू कंजकोमल पादुका

ममताहंकार वर्जो-विषयेशु विरागवान् ।

शटशत्रु-विजयी-शीतो-शटतरंग शुभंकृत् ।

मायावीनही एशस्तु नित्यतृप्तो-निरंजनः

लिप्तानास्ति कदाप्यस्य-तृट्क्षुधादि विवर्जितः

यत्र यत्र स्थलंपूतम् तत्र तत्र वसत् सदा

चतुर्विधो वर्णजातः पूज्यतेच यथा यथा

भूतं भविष्यं वक्ताहि इष्टानिष्टेच विन्दति

अन्यश्चित्रम् चैकमास्ति अधिनमे नहि कस्यचित् ।।

इतिश्री श्री स्वामी समर्थ स्तोत्रं संपूर्णम् ||

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Original link: One Hindu Dharma

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