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Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) In Hindi

Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) In Hindi

सोमवार व्रत हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले प्रमुख उपवास प्रथाओं में से एक है। सोमर व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा और उन्हें प्रसन्न करने के लिए समर्पित है। भगवान शिव और माता पार्वती का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन एक दिन के उपवास के साथ-साथ पंचाक्षरी मंत्र (ऊँ नमः शिवाय) का जाप किया जाता है।

ऐतिहासिक काल से तीन प्रकार के सोमवार व्रत देखे जाते हैं। पहला प्रकार सप्ताह दर सप्ताह किया जाने वाला साधारण सोमवार का व्रत है। दूसरा एकमात्र सोमवर प्रदोष व्रत है जो प्रदोष के दिन सोमवार को मनाया जाता है। तीसरा प्रकार सोलह सोमवार व्रत है।

इन तीनों प्रकार के सोमवार व्रतों के लिए उपवास के अभ्यास की प्रक्रिया लगभग सामान्य है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है और पूजा के अंत में सोमवार व्रत की कथा को अवश्य पढ़ना चाहिए।

जिन लोगों को वैवाहिक जीवन में परेशानी का सामना करना पड़ता है, उनके लिए सोमवार व्रत की विशेष रूप से वकालत की जाती है। यह व्रत मन से मनचाहा जीवनसाथी पाने का भी एक उपाय है। श्रावण मास (जून-जुलाई) के सभी सोमवारों को व्रत रखने का सबसे आम प्रकार का सोमवार व्रत है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र महीने में माता पार्वती पूरे समय भगवान शिव की आराधना में लगी रहती हैं। इसलिए इस महीने में भगवान शिव की पूजा करना दोगुना शुभ होता है।

सोमवार व्रत का अभ्यास शुरू करने वाली पहली महिला स्वयं माता पार्वती हैं। एक बार जब उन्होंने इस धरती पर अवतार लिया था, तो वह एक बार फिर से भगवान शिव के साथ दिव्य रूप से जुड़ना चाहती थीं और अपने स्वर्गीय निवास के लिए प्रस्थान करना चाहती थीं।

When to do Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा कब करनी चाहिए)?

ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास (जून-जुलाई) के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से सोमवार का व्रत शुरू किया जाए तो यह बहुत फलदायी होता है। एक बार में चार या पांच सोमवार का व्रत किया जा सकता है। तथा जातक अपनी इच्छा से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ होकर सोमवार के 16वें सप्ताह तक इस व्रत को कर सकता है।

हालांकि साधारण सोमवार का व्रत चैत्र, बैसाख, कार्तिक और मार्गशीर्ष हिंदी मास के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से भी शुरू किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि लगातार 16 गुरुवार का उपवास या 3 साल की अवधि तक उस व्यक्ति को वांछित परिणाम की प्राप्ति होती है।

इसी दिन को Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) का पाठ करना चाहिए।

इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें - Brihaspativar Vrat Katha (बृहस्पतिवार व्रत कथा) In Hindi

Somvar Vrat Katha Vidhi In Hindi (सोमवार व्रत कथा विधि)

सोमवार का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है। माना जाता है कि लगातार सोलह सोमवार व्रत करने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। विशेषकर अविवाहित लड़कियां अपनी इच्छा का वर पाने के लिये सोलह सोमवार का व्रत रखती हैं। सोमवार का व्रत रखने की विधि इस प्रकार है।

पौराणिक ग्रंथो में सोमवार के व्रत की विधि का वर्णन करते हुए बताया गया है कि इस दिन व्यक्ति को प्रात: स्नान कर भगवान शिव को जल चढाना चाहिये और भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा भी करनी चाहिये। पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा को सुनना चाहिये। व्रती को दिन में केवल एक समय ही भोजन करना चाहिये।

आम तौर पर सोमवार का व्रत तीसरे पहर तक होता है यानि के शाम तक ही सोमवार का व्रत रखा जाता है। सोमवार का व्रत प्रति सोमवार भी रखा जाता है, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार व्रत भी रखे जाते हैं। सोमवार के सभी व्रतों की विधि एक समान ही होती है।

मान्यता है कि चित्रा नक्षत्रयुक्त सोमवार से आरंभ कर सात सोमवार तक व्रत करने पर व्यक्ति को सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं। इसके अलावा सोलह सोमवार का व्रत मनोवांछित वर प्राप्ति के लिये किया जाता है। अविवाहित कन्याओं के लिये यह खास मायने रखता है।

शिव और माता पार्वती के पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) सुननी चाहिए।

Benefits of Vrat and Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत और सोमवार व्रत कथा के लाभ)

वैसे तो सोमवार व्रत और Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) से हर किसी को लाभ होते है लेकिन कुछ अलग भी है जिनके बारे में आपको जानना चाहिए। बता दें कि युवा अविवाहित लड़कियां अच्छे पति पाने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं। जबकि विवाहित जोड़े भी व्रत का पालन करते हैं और शिव और पार्वती के दिव्य जोड़े की प्रार्थना करते हैं और शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन की मांग करते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि सोमवर व्रत के पालनकर्ता को दुनिया के सभी सुखों का आनंद लेने के लिए आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत से घर में हमेशा शांति बनी रहती है और सुख रहता है और इसी कारण आज इसे अनगिनत संख्या में भक्त रखते है।

Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) In Hindi (1)

पुराने समय की बात है एक नगर में एक साहूकार रहता था। साहूकार के घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी। इस वजह से साहूकार दुखी और परेशान रहता था। पुत्र पाने के लिए वह हर सोमवार व्रत किया करता था और अपनी पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिव और पार्वती जी की पूजा अर्चना किया करता था।

साहूकार की भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हो गई और शिवजी से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने का आग्रह करने लगी। माता पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा की हे पार्वती इस संसार में सभी को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है जिसके भाग्य में जो लिखा है वही उसे प्राप्त होता है। लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूरी करने का आग्रह किया।

भगवान शिव ने माता पार्वती की इच्छा के अनुसार साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि पुत्र की आयु सिर्फ 12 वर्ष की होगी। साहूकार माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को सुन रहा था। यह सब सुनकर साहूकार को ना तो दुख हुआ और ना ही खुशी हुई। वह पहले की भांति भगवान शिव का व्रत करता रहा।

कुछ दिनों बाद साहूकार के घर में एक पुत्र का जन्म हुआ जब साहूकार का पुत्र 11 वर्ष का हो गया तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया साहूकार के पुत्र के मामा को बुलाया गया और उसे बहुत सारा धन देकर कहां कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्त करने के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ करते हुए और साथ में ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए और दक्षिणा देते हुए जाना।

दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था परंतु जो राजकुमार विवाह करने के लिए आया था वह एक आंख से अंधा था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं राजकुमार को देखकर राजकुमारी तथा उसके माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दे।

जब उसने अति सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न द्वाराचार के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाए। ऐसा मन में विचार करके राजकुमार के पिता ने उस लड़के और उसके मामा से बात की इस बात पर वे दोनों राजी हो गए। फिर उस साहूकार के बेटे को वर के कपड़े पहना कर तथा घोड़ी पर बैठा कर कन्या के द्वार पर ले जाया गया।

सभी कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गए। राजकुमार के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है ? ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा से कहा – यदि आप फेरों और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी । मैं इसके बदले आपको बहुत सारा धन दूंगा । दोनों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया ।

सेठ का पुत्र जिस समय जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया- ” तेरा विवाह मेरे साथ हुआ परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आँख से काना है । मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ । ” सेठ के लड़के के जाने के पश्चात् राजकुमारी ने जब अपनी चुंदड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने काने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया । उसने अपने माता – पिता को सारी बात बता दी और कहा कि यह मेरा पति नहीं है । मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है । जिसके साथ मेरा विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है ।

राजकुमारी के माता – पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी । उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए । वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया । जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई , उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था । लड़के ने अपने मामा से कहा- ” मामाजी , आज मेरी तवियत कुछ ठीक नहीं है । ” मामा ने कहा – ‘ अन्दर जाकर सो जाओ । ‘

लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए । जब उसके मामा ने आकर देखा कि उसका भानजा मृत पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ । उसने सोचा कि अगर में अभी रोना पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा । अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना पीटना शुरू कर दिया । संयोगवश उसी समय शिव – पार्वती उधर से जा रहे थे ।

जब उन्होंने जोर – जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती कहने लगी – महाराज ! कोई दुखिया रो रहा है इसके कष्ट को दूर कीजिए । ‘ जब शिव – पार्वती वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पाया कि वहाँ एक लड़का है जो आपके बरदान से उत्पन्न हुआ था । शिवजी ने कहा ‘ हे पावंती ! इसकी आयु इतनी ही थी वह यह भोग चुका । तब पार्वती – जी ने कहा – ‘ हे महाराज ! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता – पिता तड़प – तड़पकर मर जाएंगे । ‘ माता पार्वती के बार – बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया ।

शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया । शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गए । शिक्षा पूर्ण होने पर वह लड़का और उसका मामा , उसी प्रकार यज्ञ करते , ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते अपने घर की ओर चल पड़े । रास्ते में उसी शहर में आए जहाँ उस लड़के का वहाँ की राजकुमारी से विवाह हुआ था । वहाँ आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया ।

उस लड़के के ससुर वहाँ के राजा ने उसको पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी बहुत आवभगत की । बहुत से दास – दासियों सहित आदरपूर्वक अपनी राजकुमारी और जमाई को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे प्यासे रहकर अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण लिया था कि यदि हमें अपने पुत्र के मृत्यु का समाचार मिला तो वह अपना भी शरीर त्याग देंगे। लेकिन अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वे अत्यधिक प्रसन्न हुए।

उसी दिन भगवान शिव ने साहूकार के सपने में आकर कहा कि मैं तेरे सोमवार का व्रत करने और सावन सोमवार व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान कर रहा हूं। इस प्रकार जो कोई भी सोमवार व्रत करता है और सावन सोमवार व्रत कथा सुनता है उसके सभी दुख दूर होते हैं।

हे शंकर भगवान जिस प्रकार आप ने साहूकार के बेटे पर कृपा की उस प्रकार सभी पर अपनी कृपा बनाए रखना और सावन सोमवार व्रत कथा सुनने वाले को, कहने वाले को, हांमी भरने वाले को और पूरे परिवार के दुखों को दूर करना।


Somvar Vrat Katha (सोमवार व्रत कथा) In Hindi (2)

एक बार भगवान शिव जी पार्वती जी के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक की अमरावती नगर में पहुँचे. उस नगर के राजा ने भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बनवा रखा था.शिव और पार्वती उस मंदिर में रहने लगे.एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ! आज मेरी चौसर खेलने की इच्छा हो रही है.’ पार्वती की इच्छा जानकर शिव पार्वती के साथ चौसर खेलने बैठ गए. खेल प्रारंभ होते ही उस मंदिर का पुजारी वहां आ गया. माता पार्वती जी ने पुजारी जी से पूछा – कि हे पुजारी जी! यह बताइए कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी?

तो ब्राह्मण ने कहा – कि महादेव जी की. परन्तु चौसर में शिवजी की पराजय हुई और माता पार्वती जी जीत गईं. तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया. शिव और पार्वती उस मंदिर से कैलाश पर्वत लौट गए. पार्वती जी के श्राप के कारण पुजारी कोढ़ी हो गया. नगर के स्त्री-पुरुष उस पुजारी की परछाई से भी दूर-दूर रहने लगे. कुछ लोगों ने राजा से पुजारी के कोढ़ी हो जाने की शिकायत की तो राजा ने किसी पाप के कारण पुजारी के कोढ़ी हो जाने का विचार कर उसे मंदिर से निकलवा दिया. उसकी जगह दूसरे ब्राह्मण को पुजारी बना दिया. कोढ़ी पुजारी मंदिर के बाहर बैठकर भिक्षा माँगने लगा.

कई दिनों के पश्चात स्वर्गलोक की कुछ अप्सराएं, उस मंदिर में पधारीं, और उसे देखकर कारण पूछा. पुजारी ने निःसंकोच पुजारी ने उन्हें भगवान शिव और पार्वतीजी के चौसर खेलने और पार्वतीजी के शाप देने की सारी कहानी सुनाई. तब अप्सराओं ने पुजारी से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत्र रखने को कहा.

पुजारी द्वारा पूजन विधि पूछने पर अप्सराओं ने कहा- ‘सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, आधा सेर गेहूँ का आटा लेकर उसके तीन अंग बनाना.फिर घी का दीपक जलाकर गुड़, नैवेद्य, बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फूल,जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करना.पूजा के बाद तीन अंगों में एक अंग भगवान शिव को अर्पण करके, एक आप ग्रहण करें. शेष दो अंगों को भगवान का प्रसाद मानकर वहां उपस्थित स्त्री, पुरुषों और बच्चों को बाँट देना. इस तरह व्रत करते हुए जब सोलह सोमवार बीत जाएँ तो सत्रहवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाना.फिर भगवान शिव को भोग लगाकर वहाँ उपस्थित स्त्री, पुरुष और बच्चों को प्रसाद बाँट देना. इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से भगवान शिव तुम्हारे कोढ़ को नष्ट करके तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूरी कर देंगे. इतना कहकर अप्सराएं स्वर्गलोक को चली गईं.

पुजारी ने अप्सराओं के कथनानुसार सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया. फलस्वरूप भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका कोढ़ नष्ट हो गया. राजा ने उसे फिर मंदिर का पुजारी बना दिया. वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा.

कुछ दिनों बाद पुन: पृथ्वी का भ्रमण करते हुए भगवान शिव और पार्वती उस मंदिर में पधारे. स्वस्थ पुजारी को देखकर पार्वती ने आश्चर्य से उसके रोगमुक्त होने का कारण पूछा तो पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत करने की सारी कथा सुनाई.

पार्वती जी भी व्रत की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने पुजारी से इसकी विधि पूछकर स्वयं सोलह सोमवार का व्रत प्रारंभ किया. पार्वती जी उन दिनों अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर दूर चले जाने से बहुत चिन्तित रहती थीं. वे कार्तिकेय को लौटा लाने के अनेक उपाय कर चुकी थीं, लेकिन कार्तिकेय लौटकर उनके पास नहीं आ रहे थे. सोलह सोमवार का व्रत करते हुए पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय के लौटने की मनोकामना की. व्रत समापन के तीसरे दिन सचमुच कार्तिकेय वापस लौट आए. कार्तिकेय ने अपने हृदय-परिवर्तन के संबंध में पार्वतीजी से पूछा- ‘हे माता! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया था, जिससे मेरा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया?’ तब पार्वतीजी ने कार्तिकेय को सोलह सोमवार के व्रत की कथा कह सुनाई.

कार्तिकेय अपने एक ब्राह्मण मित्र ब्रह्मदत्त के परदेस चले जाने से बहुत दुखी थे. उसको वापस लौटाने के लिए कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत करते हुए ब्रह्मदत्त के वापस लौट आने की कामना प्रकट की. व्रत के समापन के कुछ दिनों के बाद मित्र लौट आया. ब्राह्मण ने कार्तिकेय से कहा- ‘प्रिय मित्र! तुमने ऐसा कौन-सा उपाय किया था जिससे परदेस में मेरे विचार एकदम परिवर्तित हो गए और मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए लौट आया?’ कार्तिकेय ने अपने मित्र को भी सोलह सोमवार के व्रत की कथा-विधि सुनाई. ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ. उसने भी व्रत किया.

सोलह सोमवार व्रत का समापन करने के बाद ब्रह्मदत्त विदेश यात्रा पर निकला. वहां नगर के राजा राजा हर्षवर्धन की बेटी राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर हो रहा था. वहां के राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि एक हथिनी यह माला जिसके गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री का विवाह उसी से करेगा.

ब्राह्मण भी उत्सुकता वश महल में चला गया. वहां कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे. तभी एक सजी-धजी हथिनी सूँड में जयमाला लिए वहां आई. हथिनी ने ब्राह्मण के गले में जयमाला डाल दी. फलस्वरूप राजकुमारी का विवाह ब्राह्मण से हो गया.

एक दिन उसकी पत्नी ने पूछा- ‘हे प्राणनाथ! आपने कौन-सा शुभकार्य किया था जो उस हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला डाल दी.’ ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत की विधि बताई. अपने पति से सोलह सोमवार का महत्व जानकर राजकुमारी ने पुत्र की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया. निश्चित समय पर भगवान शिव की अनुकम्पा से राजकुमारी के एक सुंदर, सुशील व स्वस्थ पुत्र पैदा हुआ. पुत्र का नामकरण गोपाल के रूप में हुआ.

बड़ा होने पर पुत्र गोपाल ने भी मां से एक दिन प्रश्न किया कि मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म लिया इसका क्या कारण है. माता गुंजन ने पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की जानकारी दी. व्रत का महत्व जानकर गोपाल ने भी व्रत करने का संकल्प किया. गोपाल जब सोलह वर्ष का हुआ तो उसने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया. व्रत समापन के बाद गोपाल घूमने के लिए समीप के नगर में गया. वहां के वृद्ध राजा ने गोपाल को पसंद किया और बहुत धूमधाम से आपनी पुत्री राजकुमारी मंगला का विवाह गोपाल के साथ कर दिया. सोलह सोमवार के व्रत करने से गोपाल महल में पहुँचकर आनंद से रहने लगा.

दो वर्ष बाद वृद्ध राजा का निधन हो गया, तो गोपाल को उस नगर का राजा बना दिया गया. इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से गोपाल की राज्य पाने की इच्छा पूर्ण हो गई. राजा बनने के बाद भी वह विधिवत सोलह सोमवार का व्रत करता रहा. व्रत के समापन पर सत्रहवें सोमवार को गोपाल ने अपनी पत्नी मंगला से कहा कि व्रत की सारी सामग्री लेकर वह समीप के शिव मंदिर में पहुंचे.

पति की आज्ञा का उलघंन करके, सेवकों द्वारा पूजा की सामग्री मंदिर में भेज दी. स्वयं मंदिर नहीं गई. जब राजा ने भगवान शिव की पूजा पूरी की तो आकाशवाणी हुई- ‘हे राजन्! तेरी रानी ने सोलह सोमवार व्रत का अनादर किया है. सो रानी को महल से निकाल दे, नहीं तो तेरा सब वैभव नष्ट हो जाएगा. आकाशवाणी सुनकर उसने तुरंत महल में पहुंचकर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि रानी को दूर किसी नगर में छोड़ आओ.´ सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए उसे तत्काल उसे घर से निकाल दिया. रानी भूखी-प्यासी उस नगर में भटकने लगी. रानी को उस नगर में एक बुढ़िया मिली. वह बुढ़िया सूत कातकर बाजार में बेचने जा रही थी, लेकिन उस बुढ़िया से सूत उठ नहीं रहा था. बुढ़िया ने रानी से कहा- ‘बेटी! यदि तुम मेरा सूत उठाकर बाजार तक पहुंचा दो और सूत बेचने में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें धन दूंगी.’

रानी ने बुढ़िया की बात मान ली. लेकिन जैसे ही रानी ने सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी जोर की आंधी चली और गठरी खुल जाने से सारा सूत आंधी में उड़ गया. बुढ़िया ने उसे फटकारकर भागा दिया. रानी चलते-चलते नगर में एक तेली के घर पहुंची. उस तेली ने तरस खाकर रानी को घर में रहने के लिए कह दिया लेकिन तभी भगवान शिव के प्रकोप से तेली के तेल से भरे मटके एक-एक करके फूटने लगे. तेली ने भी भागा दिया.

भूखी-प्यास से व्याकुल रानी वहां से आगे की ओर चल पड़ी. रानी ने एक नदी पर जल पीकर अपनी प्यास शांत करनी चाही तो नदी का जल उसके स्पर्श से सूख गया. अपने भाग्य को कोसती हुई रानी आगे चल दी.चलते-चलते रानी एक जंगल में पहुंची. उस जंगल में एक तालाब था. उसमें निर्मल जल भरा हुआ था. निर्मल जल देखकर रानी की प्यास तेज हो गई. जल पीने के लगी रानी ने तालाब की सीढ़ियां उतरकर जैसे ही जल को स्पर्श किया, तभी उस जल में असंख्य कीड़े उत्पन्न हो गए. रानी ने दु:खी होकर उस गंदे जल को पीकर अपनी प्यास शांत की.

रानी ने एक पेड़ की छाया में बैठकर कुछ देर आराम करना चाहा तो उस पेड़ के पत्ते पलभर में सूखकर बिखर गए. रानी दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठी जिस पेड़ के नीचे बैठती वही सुख जाता.

वन और सरोवर की यह दशा देखकर वहां के ग्वाले बहुत हैरान हुए. ग्वाले रानी को समीप के मंदिर में पुजारी जी के पास ले गए. रानी के चेहरे को देखकर ही पुजारी जान गए कि रानी अवश्य किसी बड़े घर की है. भाग्य के कारण दर-दर भटक रही है.

पुजारी ने रानी से कहा- ‘पुत्री! तुम कोई चिंता नहीं करो. मेरे साथ इस मंदिर में रहो. कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा.’ पुजारी की बातों से रानी को बहुत सांत्वना मिली. रानी उस मंदिर में रहने लगी, रानी भोजन बनाती तो सब्जी जल जाती, आटे में कीड़े पड़ जाते. जल से बदबू आने लगती. पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले- ‘हे पुत्री! अवश्य ही तुझसे कोई अनुचित काम हुआ है जिसके कारण देवता तुझसे नाराज हैं और उनकी नाराजगी के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है. पुजारी की बात सुनकर रानी ने अपने पति के आदेश पर मंदिर में न जाकर, शिव की पूजा नहीं करने की सारी कथा सुनाई.

पुजारी ने कहा- ‘अब तुम कोई चिंता नहीं करो.कल सोमवार है और कल से तुम सोलह सोमवार के व्रत करना शुरू कर दो. भगवान शिव अवश्य तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे.’ पुजारी की बात मानकर रानी ने सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ कर दिए. रानी सोमवार का व्रत करके शिव की विधिवत पूजा-अर्चना की तथा व्रतकथा सुनने लगी. जब रानी ने सत्रहवें सोमवार को विधिवत व्रत का समापन किया तो उधर उसके पति राजा के मन में रानी की याद आई. राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को रानी को ढूँढकर लाने के लिए भेजा. रानी को ढूँढते हुए सैनिक मंदिर में पहुँचे और रानी से लौटकर चलने के लिए कहा. पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया और सैनिक निराश होकर लौट गए. उन्होंने लौटकर राजा को सारी बात बताईं.

राजा स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुँचे और रानी को महल से निकाल देने के कारण पुजारी जी से क्षमा माँगी. पुजारी ने राजा से कहा- ‘यह सब भगवान शिव के प्रकोप के कारण हुआ है. इतना कहकर रानी को विदा किया.

राजा के साथ रानी महल में पहुँची. महल में बहुत खुशियाँ मनाई गईं. पूरे नगर को सजाया गया. राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया. नगर में निर्धनों को वस्त्र बाँटे गए.

रानी सोलह सोमवार का व्रत करते हुए महल में आनंदपूर्वक रहने लगी. भगवान शिव की अनुकम्पा से उसके जीवन में सुख ही सुख भर गए.

सोलह सोमवार के व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में किसी तरह की कमी नहीं होती है. स्त्री-पुरुष आनंदपूर्वक जीवन-यापन करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं.

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