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हिन्दू धर्म विश्वकोश (Hindu Dharma Encyclopedia)

Ravivar Vrat Katha In Hindi (रविवार व्रत कथा)

Ravivar Vrat Katha In Hindi (रविवार व्रत कथा)

हिंदू धर्म में, सप्ताह के सात दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होते हैं। ऐसे में रविवार के दिन का हिंदू धर्म में भी महत्व है। रविवार का दिन भगवान सुयदेव को समर्पित है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों ही करते हैं। रविवार का व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा करने का विधान है।

रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा करने से सुख, समृद्धि, धन और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। रविवार का व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आपको सम्मान, धन और प्रसिद्धि और अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। यह व्रत कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी किया जाता है।

इस लेख में हम Ravivar Vrat और Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) के बारे में जानेंगे।

When to do Ravivar Vrat and Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत और रविवार व्रत कथा कब करनी चाहिए)?

ज्योतिषियों के अनुसार हिंदू कैलेंडर (सितंबर-अक्टूबर) के आश्विन माह में शुक्ल पक्ष में पहले रविवार को व्रत की शुरुआत करना बहुत शुभ माना जाता है।

सूर्य का व्रत एक वर्ष या 30 रविवारों तक अथवा 12 रविवारों तक करना चाहिए।

Ravivar Vrat Katha Vidhi In Hindi (रविवार व्रत कथा विधि)

भक्त रविवार की सुबह भगवान सूर्य देव को जल चढ़ाकर और सूर्य देव की पूजा करके उपवास शुरू करते हैं। चूंकि सूर्य देव का रंग लाल है, तो उनकी मूर्ति को लाल रंग में रखना चाहिए और उसे लाल कमल की तरह फूलों से सजाना चाहिए।

उपवास सुबह से शुरू होता है और अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद समाप्त होता है। आप शाम के समय बीच में एक बार खाना खा सकते हैं।

सुबह सूर्य देव की पूजा धूप, चंदन की लेप, गेहूं के दाने और विशेष रूप से तैयार किए गए व्यंजन चढ़ाकर की जाती है। फिर Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) के पाठ के साथ उपवास शुरू होता है और अगली सुबह सूर्य दर्शन तक चलता रहता है।

इसके बाद सूर्य देव को जल चढ़ाने के साथ इसका समापन होता है। व्रत के दौरान लोग एक बार भोजन कर सकते हैं। वहीं पूजा के बाद व्रत करने वालों को उन गरीबों को भिक्षा देनी चाहिए जो बहुत शुभ माने जाते हैं।

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Benefits of Ravivar Vrat and Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत और रविवार व्रत कथा के लाभ)

रविवर व्रत और Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) भगवान सूर्य को समर्पित है। रविवर व्रत और Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) रखने वाले व्यक्ति को भगवान सूर्य सम्मान, सम्मान, शक्ति और पद प्रदान करते हैं। व्रत (उपवास) दुश्मनों और प्रतिद्वंद्वियों पर जीत हासिल करने में भी मदद करता है।

इस दिन भक्त लाल रंग के कपड़े पहनते हैं और लाल रंग के फूल और लाल रंग के चंदन के लेप से सूर्य देव की पूजा करते हैं। भक्त नमक, तेल और तले हुए भोजन से भी परहेज करते हैं। यह भी माना जाता है कि रविवर व्रत और Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) करने से कुष्ठ, दाद और आंखों के छाले जैसे चर्म रोगों से बचाव होता है।

रविवर व्रत और Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) के अन्य लाभ:

  • नाम, प्रसिद्धि, सम्मान और धन प्रदान करता है।
  • बुद्धि और स्वास्थ्य के लिए।
  • मनोकामना पूर्ति के लिए।
  • सूर्य देव के आशीर्वाद के लिए।

Ravivar Vrat Katha In Hindi (रविवार व्रत कथा)

एक समय एक गाँव में एक बुढि़या रहती थी। वह नियम से प्रत्‍येक रविवार को सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से निवृत होकर अपने घर को गाय के गोबर से लीपती थी। फिर भोजन बनाकर भगवान को भोग लगाकर स्‍वयं भोजन करती थी।

रविवार व्रत और Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) करने से बुढि़या के घर में किसी भी चीज की कमी नही थी एवं घर में पूरा आनन्‍द-मगंल था, ऐसे ही कुछ दिन बीत गये। बुढि़या की पडौसन जिसकी गाय का वह गोबर लाती थी। वह सोचने लगी कि यह बुढि़या प्रत्‍येक रविवार को मेरी गाय का गोबर ले जाती है इसका क्‍या कारण है।

रविवार वाले दिन उसने अपनी गाय को घर के अन्‍दर बाँध दिया। जब वह बुढि़या गाय का गोबर लेने गई तो उसे कुछ नही मिलने के कारण वह न तो भोजन बना पाई और ना ही भगवान को भोग लगा पाई।

इस प्रकार बुढि़या का उस दिन निराहर का व्रत हो गया और वह भूखी-प्‍यासी ही सो गई। रात्रि के समय भगवान बुढिया के सपनो में आकर भूखी सोने का कारण पूछा तो उसने गाय का गोबर नही मिलने का कारण बताया।

यह सुनकर भगवान ने कहा माता मैं तुम्‍हे ऐसी गाय दे दूगा जिससे तुम सभी इच्‍छाऐ पूर्ण कर सकती हो। क्‍योकि तुम हमेशा रविवार वाले दिन गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मुझे भोग लगाती हो, फिर तुम स्‍वंम खाती हो।

मैं तुम्‍हारी इस भक्ति से प्रसन्‍न हो गया हू। इसलिए मैं तुम्‍हे एक गाय और बछड़ा देता हूँ। यह वरदान देकर भगवान वहा से अर्न्‍तध्‍यान हो गए। अचानक बुढि़या की आखे खुली तो उसने देखा की उसके आगंन में एक बहुत सुन्‍दर गाय और बछड़ा है।

बुढि़या गाय और बछड़े को देखकर अति प्रसन्‍न हुई और उन दोनो को बाहर बॉंध दिया। जब बुढि़या के घर के बाहर पडौसन ने गाय और बछडा बँधा देखा तो उसका ह्दय जल उठा। अचानक उसने देखा की बुढि़या की गाय साेने का गोबर किया तो उसने अपनी गाय का गोबर वहा पर डाला और सोने के गोबर को उठा ले गई।

वह रोज ऐसा ही करने लगी, बेचारी बुढि़या को इसकी खबर भी नहीं होने दी। तब ईश्‍वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढि़या ठगी जा रही है।

एक दिन संध्‍या के समय भगवान ने अपनी माया से बड़े जोर की ऑंधी चला दी और वर्षा की शुरूआत हो गई। बुढि़या ने ऑंधी और बारीस के भय से अपनी गाय और बछडे को अन्‍दर बॉंध दिया। जब वह सुबह उठी और गाय का गोबर उठाने गई तो देखा की गौ ने सोने का गोबर कर रखा था।

तो उसके आश्‍चर्य की सीमा नही रही और वह प्रतिदिन गाय को भीतर बॉंधने लगी। उधर पड़ोसन ने देखा की बुढिया रोज गाय को भीतर बॉंधने लगी और उसका सोने का गोबर उठाने को दॉंव नही लगा।

वह बुढि़या से और ज्‍यादा ईष्‍या करने लगी, कुछ उपाय न देख पड़ोसन राजा के पास गयी। और कहा महाराज मेरे पड़ोस में एक बुढि़या है उसके पास एक ऐसी गाय है जो आपके योग्‍य है।

वह गाय रोज सोने का गोबर करती है। यदि वह उसके पास रही तो बुढि़या तो आप से भी ज्‍यादा पैसे वाली बन जाएगी। वह बुढि़या उस सोने देने वाली गाय को क्‍या करेगी।

राजा ने अपने सिपाहीयो को तुंरत बुढि़या के घर भेजा और गाय को लाने का आदेश दिया। बुढि़या रोज की तरह सुबह नहाकर घर को लीपकर भोजन बनाकर , भगवान को प्रसाद लगा रही थी। कि अचानक राजा के सिपाही आए और गाय को ले गये बुढि़या बहुत रोई-चिल्‍लाई पर उसकी किसी ने नही सुनी। उस दिन बुढि़या ने गाय के वियोग में भोजन भी नही किया और रात भर रो-रोकर भगवान से गौ को वापिस लाने की प्रार्थना करती रही।

उधर राजा गाय काे देखकर बहुत प्रसन्‍न हुआ, किन्‍तु सुबह उठकर देखा तो सोने की जगह पूरे महलो में गोबर ही गोबर हो रहा था। राजा यह देखकर घबरा गया। उसी दिन रात्रि को राजा के सपनो में भगवान ने आकर कहा हे राजन तुम यह गाय उसी वृद्धा काे दे दो। उसी में तेरा भला है।

उस वृद्धा की पूजा-अर्चना तथा रविवार के व्रत से प्रसन्‍न होकर मैने उसे यह गाय वरदान में दी थी। यह कहकर भगवान अतंरर्ध्‍यान हो गये। प्रात:काल होते ही राजा ने उस बुढि़या को दरबार में बुलाकर बहुत सारा धन देकर सम्‍मान सहित गाय और बछड़ा लौटा दिया।

बुढि़या की पड़ौसन को बुलाकर उसे दण्‍ड़ दिया। यह करने के बाद राजा के महलो में से गोबर की गदंगी अपने आप चली गई। उसी दिन से राजा ने अपने राज्‍य की सभी प्रजा को आदेश दिया कि वो Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) का आयोजन करेगा।

ताकि नगर के सभी लोग सुखी जीवन व्‍यतीत कर सके। और इस व्रत को करने से सभी की बीमारी प्रकृति के प्रकोप से समाप्‍त हो जाऐगी। उसी दिन से राज्‍य में सभी लोग रविवार व्रत कथा का पूरे नियम से पाठ करने लगे एवं राज्‍य की प्रजा सुखी जीवन व्‍यतीत करने लगी।

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